Condition of Women in Indian Society (भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति)
Condition of Women in Indian Society At a Glance
महिलाओं की स्थिति किसी भी राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्थिति को दर्शाती है। पुरुष प्रधान कहे जाने वाले हमारे देश भारत में वर्तमान में महिलाओं के पास प्रत्येक क्षेत्र में समान अधिकार प्राप्त हैं और हम उनके लिए विशेष तौर पर 8 मार्च को महिला दिवस भी मनाते हैं, लेकिन भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति (यथा : सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक) का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाए तो इसमें प्राचीन समय से लेकर आधुनिक समय तक में आमूलचूल बदलाव देखने को मिलता है। भारतीय सभ्यता के वैदिक काल में जिस स्त्री को देवी का दर्जा प्राप्त था उनके लिए कहॉं पर ऐसी ऐतिहासिक चूक हुई कि वो मंदिर की देवी से कालांतर में हरम में कैद पुरुषों की भोग व विलास की वस्तु बन गईं।
Condition of Women in Indian Society History Before British Era
वैदिक काल में स्त्रियां सम्मानित थी, उन्हें शिक्षा संबंधी अधिकार व संपत्ति में भी समान अधिकार प्राप्त थे। वे सभा और समितियों में भी स्वतंत्रतापूर्वक भाग लेती थी। प्रत्येक क्षेत्र में आदृत व प्रतिष्ठित थी किंतु जैसे-जैसे मुगल शासन का भारतीय समाज में प्रभाव बढ़ा, विदेशी आक्रांताओं व शासकों की विलासितापूर्ण प्रवृत्ति ने महिलाओं को उपभोग की वस्तु बना दिया जिस कारण भारतीय समाज में विभिन्न सामाजिक कुरीतियों जैसे; पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, अशिक्षा इत्यादि का प्रवेश हुआ और महिला घर की चहारदीवारी में कैद होती गईं। हालांकि ऐसी घिनौनी करतूतों से खुद की रक्षा के लिए रानी पद्मिनी ने चित्तौड़ किले में ‘जौहर’ की शुरुआत की थी। अकबर के समय से महिलाओं को एकांत में रखने का चलन शुरु हुआ जिसे ‘हरम’ कहा गया। यहॉं बादशाह को छोड़कर किसी और पुरुष के प्रवेश पर मनाही होती थी। इस प्रकार महिलाओं का स्तर दोयम दर्जे का बना दिया गया और वो सिर्फ गृह शोभा बनकर रह गईं।
Condition of Women in Indian Society British Era
ब्रिटिश शासन का काल महिलाओं के लिए उत्कर्ष का काल कहा जा सकता है क्योंकि इस समयावधि में भारत के कुछ समाज सुधारकों जैसे राजाराममोहन राय, दयानंद सरस्वती, ईश्वरचंद विद्यासागर, ज्योतिबा राव फुले और केशवचंद्र सेन ने महिलाओं के लिए बनाई गई भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध कई महत्त्वपूर्ण आंदोलन चलाएं तथा तत्कालीन ब्रिटिश शासकों के समक्ष स्त्री-पुरुष समानता, स्त्री शिक्षा, सती प्रथा पर रोक तथा बहु विवाह पर रोक की मांग की। परिणामस्वरूप सती प्रथा निषेध अधिनियम जैसे कानून बनाए गए जिनका भारतीय समाज पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से दूरगामी प्रभाव पड़ा और महिलाओं की स्थिति में संतोषजनक परिवर्तन आया। स्त्री जागरूकता में बढ़ोत्तरी हुई और कई महिला सुधार संगठनों का भी सूत्रपात हुआ। इसी समयकाल में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई व बेगम हजरत महल जैसी कई वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से विद्रोह कर महिला शक्ति को बल दिया और महिलाओं के सम्मान को बढ़ाया।
Condition of Women in Indian Society After Freedom
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् जब भारत का अपना संविधान बनकर तैयार हुआ तब महिलाओं को भी बराबरी का अधिकार दिया गया और उनकी आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार व उन्हें विकास की मुख्य धारा में लाने हेतु सरकार द्वारा अनेक प्रकार के कल्याणकारी तथा विकासात्मक योजनाओं व कार्यक्रमों का संचालन किया गया। 19वीं सदी के मध्य से 21वीं सदी तक आते-आते भारतीय महिलाओं की स्थिति में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। महिलाओं ने शैक्षिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, प्रशासनिक, खेलकूद आदि जैसे विविध क्षेत्रों में अपना परचम लहराया है। आज महिलाएं आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी भी हैं। वे पुरुष प्रधान वाले चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों जैसे पायलट, सेना, वैज्ञानिक, इंजीनियर, पत्रकारिता आदि में अपनी योग्यता व कुशलता का परिचय दे रही हैं। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाओं ने देश के शीर्षस्थ पदों को सुशोभित किया है।
Condition of Women in Indian Society Modern Time
वर्तमान परिदृश्य में भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक तो कही जा सकती है किंतु पुरुष प्रधान मानसिकता से अछूती नहीं। भारतीय समाज की परम्परागत व्यवस्था में महिलायें आजीवन पिता, पति और पुत्र के संरक्षण में जीवन-यापन करती रही हैं। भारतीय संविधान में पुरूषों एवं महिलाओं को समान दर्जा और अधिकार दिये जाने के बावजूद इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि विकास और सामाजिक स्तर की दृष्टि से महिलायें अभी पुरूषों से काफी पीछे हैं। अभी भी लैंगिक असमानता, बाल विवाह, दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, महिला उत्पीड़न जैसी समस्याएं व्यापक स्तर पर व्याप्त हैं। हालांकि महिला संरक्षण के संदर्भ में विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों द्वारा इस पर नियंत्रण किया गया है।
वस्तुत: इक्कीसवीं सदी महिला सदी है। यदि भारतीय समाज का विकास करना है तो बिना महिलाओं के विकास के यह संभव नहीं है। महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा और सशक्तिकरण की दिशा में बेहतर लक्ष्य हासिल किए बिना विकास का सफर तय नहीं किया जा सकता है। ध्यातव्य है कि देश की आबादी में महिलाओं की संख्या लगभग 50 फ़ीसदी है। महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर रही हैं और वर्तमान में महिलाओं ने एक सशक्त नारी की छवि स्थापित की है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था - " जब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होता तब तक विश्व का कल्याण संभव नहीं है। किसी चिड़िया के लिए एक पंख से उड़ना संभव नहीं है।"
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FAQs
Q. What are the conditions of women in India?
Ans. Treating woman as objects of consumption
Q. What are the main problems of women in India?
Ans. Inequality
Q. What is the condition of women in society today?
Ans. Second rate behaviour
Q. What was the status of women in Indian society?
Ans. Reality something else to say something else
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